वाट्सएप पर संचालित समूह 'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' द्वारा 'एक दिन एक साहित्यकार' की श्रृंखला के अन्तर्गत 11 व 12 जुलाई 2020 को मुरादाबाद के विख्यात व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी के दस गीतों पर ऑनलाइन साहित्यिक चर्चा की गई । सबसे पहले डॉ मक्खन मुरादाबादी द्वारा दस गीत पटल पर प्रस्तुत किये गए-----
*गीत - 1*
शहरों से जो
मिली चिट्ठियां
गांव - गांव के नाम ।
पढ़ने में बस
आंसू आये
अक्षर मिटे तमाम ।।
हर चिट्ठी पर
पुता मिला है
धूल - गर्द का लेप ।
शारीरिक सब
भाषाओं की
बिगड़ गई है शेप ।
यात्राओं की
पीड़ाओं से
कहां अभी आराम ।।
शहरों से जो-------।।
मेहनत करके
अर्जित करना
जिया एक ही राग ।
लिख आईं ये
भाग सभी के
लिखा न अपना भाग।।
जिनके बल पर
वैभव , उनके
भूले - बिसरे नाम ।
शहरों से जो---------।।
आशाएं थीं
सब आयेंगी
होकर मालामाल ।
गांव दुखी हैं
दुख के मारे
सोच - सोच कर हाल।।
वज्रपात ने
कौड़ी - कौड़ी
करके भेजे दाम ।
शहरों से जो-----।
*गीत : 2*
हर दोपहरी बाट जोहती
है वृक्षों की छांव ।
चल देहात नगर से, जाने
कब लौटेंगे गांव ।।
खंडहर के सन्नाटों से जा
मांगे अन्धा भीख।
आकर झोली में पड़ती पर
दो दो मुट्ठी चीख ।।
लेकर आशा घोर निराशा
लौटे उल्टे पांव ।
सब देहात------।।
चमक दमक ने हम सबकी ही
आंखें दी थीं फोड़ ।
गुणा भाग सब और घटाना
ठीक नहीं था जोड़।।
जो सपनों में महल बुने सब
उल्टे लगते दांव ।
सब देहात------।।
ताल तलैया कुएं पोखरे
गई नदी तक सूख ।
मिड-डे मील पढ़ाने निकला
ले सुरसाई भूख ।।
मूल बुलाता सूद बिना सब
आओ अपने ठांव।
सब देहात -------।।
*गीत : 3*
ठहर सतह पर रुक मत जाना
मन से मन को छूना ।
भीतर भीतर बजती रहती
कोई पायल मुझमें ।
प्रेम परिंदा घर कर बैठा
होकर घायल मुझमें।।
परस भाव से अपनेपन के
पन से पन को छूना ।
ठहर---------------।।
अंतर्मन में चाह उमगना
दुविधा भर जाता है ।
कुछ-कुछ जी उठता है भीतर
कुछ-कुछ मर जाता है।।
आगा पीछा सोच समझकर
तन से तन को छूना ।
ठहर---------------।।
घने अभावों में मुट्ठी भर
भावों का मिल जाना।
चिथड़े-चिथड़े पहरन के ज्यों
दो कपड़े सिल जाना।।
उल्लासों के मेले छड़ियां
कन से कन को छूना ।
ठहर----------------।।
*गीत : 4*
मौसम जब मनचले हुए तो
डांट दिए रितुओं ने मौसम।
ड्योढ़ी ड्योढ़ी यौवन आहट
जात उमंगित न्यारी न्यारी ।
हाव भाव में भरी चुलबुली
मिसर उठी पतियाती क्यारी।।
सूंघ महकते संवादों को
सांट दिए रितुओं ने मौसम।
डांट दिए------------------।।
उमड़ घुमड़ कर रस आया तो
रसने अधर,अधर को आए ।
कातर कातर सहमे सहमे
नीचे पड़ कर नयन लजाए।।
सोच समझ कर इस भाषा को
चांट दिए रितुओं ने मौसम।
डांट दिए-----------------।।
मनमौजी मनमाने पंछी
बहुत मनाए पर कब माने।
चुपके छुपके देखभाल कर
चुगने लगे प्रेम के दाने ।।
विपरीती परिणाम दिखे तो
फांट दिए रितुओं ने मौसम ।
डांट दिए------------------।।
*गीत- 5*
*गीत पेड़ से गुज़रा*
अमरूदों को कुछ तोतों ने
कुतर कुतर फिर,कुतरा।
दुख दारुण हो टपक टपक कर
पेड़ गीत से गुज़रा।।
टहनी टहनी अपना दुखड़ा
कहती फिरती रो कर।
पगलाई वह लुटी पिटी सी
अपना सबकुछ खोकर।।
तड़क भड़क कर हार गईं पर
तोता एक न सुधरा।
पेड़ गीत से गुज़रा ।।
पत्तों में भी खुसर फुसर यह
जो थे रतन छिपाए।
हम रखवाले तो भी उनको
रक्ष नहीं कर पाए।।
क़ौम दगीली आज हुई है
हर पत्ता नाशुकरा।
पेड़ गीत से गुज़रा।।
सहमी सहमी कलियां बोलीं
धर्म हमारा खिलना।
उन्हें मुबारक उनकी करनी
जिनसे छल ही मिलना।।
हाथ छुआएं अब तोड़ेंगी
उन छैलों के थुथरा।
पेड़ गीत से गुज़रा ।।
*गीत - 6*
आस पास में इसीलिए तो
रहती चहल पहल है।
पीड़ाओं को लगता,मेरा
घर आनन्द महल है।।
मिलता कब है लाचारी को
सम्मान जनक आसन।
भोर हुए से दिन ढलने तक
करती चौका बासन।।
मेरे घर में इनके ही तो
मन का सुखद महल है।
घर आनन्द महल है।।
घर से निकलूं तो मिल जाती
भिखमंगी मजबूरी।
धर्मपरायण मर्मशास्त्र भी
चलें बनाकर दूरी।।
मेरे दर पर इन दुखियों की
होती रही टहल है।
घर आनन्द महल है।।
थक हारी पड़ जातीं कुछ तो
फुटपाथी बिस्तर पर।
तम को गाने लग जातीं फिर
अपना सगा समझकर।।
इनकी भूकंपी सांसों की
मुझ तक रही दहल है।
घर आनन्द महल है।
*गीत : 7*
बाहर हैं,पर दिखे नहीं हों
ये सबके भीतर होते हैं।
मानो या मत मानो लेकिन
गीतों के भी घर होते हैं।।
गीत लोक के वंशज ठहरे
हर मौसम में गाये जाते।
कभी कभी तो खुलते पूरे
कभी कभी सकुचाये जाते।
पानी पानी पानी मांगे
जब जब गान मुखर होते हैं।
गीतों के------------------।।
मचले जो ये रीति रंग में
रचने में ही लीन हो गए।
भक्त हुए तो ऐसे जिनके
प्राण बांसुरी बीन हो गए।।
भटके को जो राह दिखादें
इनमें इतर असर होते हैं।
गीतों के----------------।।
चलते चलते घर पाने को
गीत अगीत प्रगीत हुए हैं।
पी ली नीमों की ठंडाई
तब जाकर नवगीत हुए हैं।।
दिशाहीन रसपानों की ये
रचते धुकर पुकर होते हैं।
गीतों के ------------------।।
*गीत : 8*
मोबाइल के नोट पैड की
खिलकर आई भीत।
दक्ष पोरुए टाइप करके
चले गए कुछ गीत।।
चंद्रयान से चली चांदनी
उतरी तम के द्वार ।
किरणयान का टिकिट कटा तम
पहुंचा पल्ली पार।।
दिवस रात सब अभिनय करके
ऐसे जाते बीत ।
दक्ष पोरुए---- ।।
मन विह्वल में कतरे पर के
उठते नहीं उड़ाव ।
पर कतरों का षड्यंत्रों से
गहरा बहुत जुड़ाव।।
इनकी ढाल बनी दृढ़ रहती
ग़जट हुई हर नीत।
दक्ष पोरुए-------।।
आय योजना तो उसमें को
कितने पड़ते कूद।
गाय दुखी है हर खूंटे पर
देना पड़ता दूध।।
शिष्टाचारित मन से होती
भ्रष्टाचारित जीत।
दक्ष पोरुए-------।।
*गीत : 9*
यह जो चीनी गुब्बारा है
इसकी हवा निकालो ।
बहुत पतंगें उड़ लीं इसकी
उनका अब उड़ना क्या।
इसका मांझा इसकी गर्दन
और अधिक करना क्या।
कंधे बहुत उचकते इसके
उनका खवा निकालो।
इसकी--------------।।
जितनी पैठ बनाई इसने
बाजारों में अपने।
अपनी बढ़ा दुकानें कर दो
लंगड़े दूषित सपने।।
फूं - फूं बड़ी दिखाता
फिरता
फूं - फूं सवा निकालो।
इसकी---------------।।
दूध न देती आसानी से
नये ब्यांत की झुटिया।
जबरन भी यदि दुहना चाहो
खाली रहती लुटिया ।।
रवेदार बनता फिरता है
इसका रवा निकालो ।
इसकी--------------।।
चीलें चमगादड़ चूहे सब
जिसके तोते-मिट्ठू।
अपने घर ही भरे पड़े हैं
इस शातिर के पिट्ठू।।
एक बार ही फंद कटें सब
ऐसी दवा निकालो।
इसकी----------- ।।
*गीत : 10*
किया उजागर कोरोना ने
आडम्बर का बौनापन।
बिंदी जैसी सेवाओं के
सूरज जैसे विज्ञापन।।
चुग्गा होता जिनका हिस्सा
जाल तने रहते उनपर।
अर्थमुखी खा उसको जाते
बाने में ताना बुनकर।।
बनकर बन्दर सब गांधी के
गड्डी गिनते नियमासन।
बिंदी जैसी------------।।
डाल डाल पर हावी होकर
लुक में अपने रहता है।
इर्द गिर्द का मौसम चाहे
किलच किलच कर डहता है।।
इन जैसों की लाबिंग तगड़ी
साधा सबने ऊंटासन।
विंदी जैसी-----------।।
स्कूलमुखी सड़कें तो देखो
लिप्त पड़ीं हुड़दंगों में ।
कहां मिलेगा अनुशासन जो
रहा संटियों अण्डों में ।।
ब्रेन खिड़कियां कैसे खोले
पड़ा रिटायर मुर्गासन।
बिंदी जैसी----------।।
इन गीतों पर चर्चा करते हुए प्रख्यात साहित्यकार यशभारती माहेश्वर तिवारी ने कहा कि हिंदी की हास्य व्यंग्य कविता में पिछले दशकों में तेजी से अपनी पहचान बना चुके डॉ. मक्खन मुरादाबादी अपने ढंग के अकेले रचनाकार हैं ।पिछले दिनों आये उनके पहले संग्रह से इसकी पुष्टि होती है ।इस बीच उन्होंने गीतलिखना शुरू किया है ।उन्होंने अपने लेखन का आरम्भ छंदोबद्ध रूप से किया यह स्पष्ट रूप से नहीं कहा जा सकता ।जिन हास्य व्यंग्य के कवियों ने अपना लेखन गीतकार के रूप में किया उनमें स्व.सुरेंद्र मोहन मिश्र ,श्री सुरेश उपाध्याय तथा सुरेंद्र दुबे से मेरा परिचय रहा ।इन लोगों ने सिर्फ आस्वाद बदलने के लिए नहीं बल्कि रचनात्मक दबाव के तहत गीत के आंगन में गाते गुनगुनाते रहे ।इस बीच प्रवीण शुक्ल की गुनगुनाहट के स्वर सुनाई देने लगे हैं ।मक्खन मुरादाबादी की गीत के घर आमद नई है ।मक्खन ने पटल पर प्रस्तुत अपने गीतों में कुछ खूबसूरत बिम्बों के प्रयोग किये हैंजो उनके भीतर बैठे गीत कवि की संभावनापूर्ण आश्वस्ति को बल देते हैं।
वरिष्ठ कवि डॉ अजय अनुपम ने कहा कि गीत हमेशा गीत ही है। लय के साथ भावों की प्राणवत्ताही उन्हें पाठक/श्रोता के मन के भीतर तक सम्प्रेषित करती है। गीत कार अपने परिवेश को जीता है तब गीत रचना होती है। मक्खन जी ने गीत में समकालीन समाज की सुखद परिस्थितियों के साथ विद्रूप का भी सुंदर चित्रण किया है। एकदम नवीन खरेऔर ताज़ा तरीनबिम्ब मक्खन जी को गीतकारों की अग्रिम पंक्ति में ले जा रहे हैं। आगे क्याहोताहै इसकी प्रतीक्षा काव्य जगत करेगा। मैं भी उनमें शामिल हूं। मक्खन जी को हार्दिक बधाई के शब्द कम पड़ रहे हैं।
मशहूर शायरा डॉ मीना नक़वी ने कहा कि आदरणीय डॉ.मक्खन मुरादाबादी जी के गीतों को पढ़ कर नि:शब्द हूँ। हम अब तक उन्हे सशक्त समर्थ और उत्कृष्ट व्यंग्यकार और हास्य कवि के रूप ही जानते हैं। आज उनके दस गीतों को पढ़ कर महसूस हुआ कि उनका गीतकार कितना समर्थ और सशक्त है। अब तक उनकी व्यंग्य की चुटीली सुनारों वाली चोट पर गीतों की मधुरता की यह लोहारी चोट बहुत मनोहारी है। व्यंग्य पर सशक्त पकड़ रखने वाले ख्याति प्राप्त कवि ने गीतों में विस्मयकारी इतिहास रच दिया है।
मशहूर शायर डॉ कृष्ण कुमार नाज़ ने कहा कि आदरणीय मक्खन जी भी छंदमुक्त से छन्दयुक्त कविता की तरफ़ आए और इस यात्रा के आरंभ में ही शानदार गीतों की रचना की। लोगों ने उनकी छंदमुक्त कविताएं तो पढ़ी और सुनी हैं, लेकिन यह पहला अवसर होगा, जब लोग उनके गीत भी पढ़ेंगे। चूंकि मक्खन जी व्यंग्य कवि हैं, इसलिए उनके गीतों में भी सशक्त व्यंग्य के दर्शन होते हैं। उनके यहां आम आदमी की दौड़-धूप, उसकी समस्याएं और उन समस्याओं का निदान आसानी से देखा जा सकता है। उन्होंने शब्दों को भाषा की दृष्टि से नहीं, बल्कि उपयोग की दृष्टि से देखा है, इसीलिए उनके यहां अंग्रेज़ी, उर्दू आदि के अतिरिक्त देशज शब्द भी प्रचुर संख्या में मिलते हैं।
मशहूर शायर डॉ मुजाहिद फ़राज़ ने कहा कि सब की तरह मैंने भी मक्खन जी को हमेशा एक व्यंग्य के कवि के रूप में देखा और सुना है।लेकिन अब उन्हें एक गीतकार के रूप में पढ़ कर अचम्भा भी नहीं हुआ।क्योंकि असल चीज़ सृजन है। मक्खन जी के गीत पढ़ कर यह कहीं नहीं लगता कि वह इस डगर के नए मुसाफिर हैं।हाँ उन की व्यंग्यात्मक शैली गीतों में भी झलक पड़ती है।और यह होना स्वाभाविक भी है।क्योंकि व्यंग्य उनका पहला प्यार जो ठहरा। गीत का ख़्याल मन में आते ही सोई हुई सी रक्तकोशिकाओ में एक प्रवाह सा महसूस होता है। ठहरी हुई ज़िन्दगी में एक लहर सी उठती है। अब अगर मक्खन जी के गीतों को पढ़ा जाए तो वह इस कसौटी पर पूरे उतरते हैं।
वरिष्ठ कवि डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि हास्य व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी का नया काव्य रूप गीतकार। लगता है कि गीतों की पायल उनके मन में बहुत पहले से ही बजती रही है। इसका आभास तो बीते साल ही प्रख्यात साहित्यकार यश भारती माहेश्वर तिवारी के जन्मदिन पर आयोजित पावस गोष्ठी में उस समय हो गया था जब उन्होंने श्रंगार रस का एक गीत सुनाया था। पटल पर प्रस्तुत उनके सभी 10 गीत मन को भीतर तक छू लेते हैं। उनके अंतर्मन रूपी घर में बरसों से सकुचाए बैठे गीत अब खुलकर मुखर हो गए हैं और मोबाइल फोन के नोटपैड पर थिरकने लगे हैं। मानों या मत मानों उनके गीतों में वही कसमसाहट ,तिलमिलाहट, पैनापन ,नीम की ठंडाई, संवेदना, भावविह्वलता दिखाई देती है जो उनकी व्यंग्य कविताओं में है।
वरिष्ठ कवि डॉ शिशुपाल मधुकर ने कहा कि मुरादाबाद लिटरेरी क्लब के रचनाकारों की समीक्षा कार्यक्रम के क्रम में डॉ कारेंद्र देव त्यागी उर्फ मक्खन मुरादाबादी जी के दस नवगीत पढ़ने को मिलना एक अप्रत्याशित घटना है।अप्रत्याशित इसलिए कि अभी तक हमने उनका यह रूप कभी नहीं देखा।कवि गोष्ठियों या मंचों पर उन्होंने हमेशा गद्यात्मक व्यंग रचनाओं का ही पाठ किया है।अचानक इतने गंभीर और उत्कृष्ट शैली में नवगीतों की रचना अपने आप में अविश्वस्नीय सी लगती है। बड़ा ही सुखद लगा कि मक्खन जी ने गीत की दुनिया में सशक्त रूप से धमाकेदार एंट्री की है।सभी दस गीतों को कई बार पढ़ा।सभी गीत नवगीत की सभी शर्तों को उत्कृष्ट रूप से पूरा करते है।
प्रसिद्ध कवियत्री डॉ पूनम बंसल ने कहा कि मेरे अग्रज आदरणीय मक्खन भाई साहब जी के गीतकार के रूप के नये अवतार को नमन करती हूं। उनके सशक्त गीतों पर कुछ समीक्षा कर सकूँ अभी इस काबिल नहीं हूं ।हाँ गीतों को पढ़कर बहुत आनंदित हूं और हृदय की अतल गहराइयों से अपनी अनंत शुभकामनाएं प्रेषित कर रही हूं।
प्रसिद्ध नवगीतकार योगेंद्र वर्मा व्योम ने कहा कि आदरणीय डॉ. मक्खन मुरादाबादी के सभी 10 गीतों से गुज़रते हुए साफ-साफ महसूस किया जा सकता है कि उनकी यह अभिनव गीत-यात्रा भी लोकरंजन से लेकर लोकमंगल तक की वैचारिक पगडंडियों से होती हुई निरंतर आगे बढ़ी है। उनके गीतों में वर्तमान के त्रासद समय में उपजीं कुंठाओं, चिन्ताओं, उपेक्षाओं, विवशताओं और आशंकाओं सभी की उपस्थिति के साथ-साथ गीत के परंपरागत स्वर में लोकभाषा के शब्दों की मिठास भरी सुगन्ध भी है। व्यंग्य कविता-यात्रा की पांच दशकीय अवधि में प्रचुर मात्रा में मुक्तछंद में कविताई करने वाला लेकिन हर क्षण कविता के हर स्वरूप को जीने वाला रचनाकार जब अचानक छंद की ओर लौटता है और वह भी गीत की ओर तो सभी का चौंकना भी स्वभाविक है और गीत की शक्ति का स्वप्रमाणित होना भी।
युवा शायर राहुल शर्मा ने कहा कि डॉ मक्खन मुरादाबादी उन्होंने सिद्ध कर दिया कि गुणवत्ता की चमक कभी फीकी नहीं होती उत्पाद चाहे जो भी हो। एक ही झटके में उन्होंने आवरण उतारा तो व्यंग कवि के भीतर बैठे एक अद्भुत, विलक्षण, कल्पना तीत रूप से रहस्यमयी गीतकार के दर्शन हुए जिसकी आभा ने सभी की आंखों को चौंधिया दिया। पटल पर प्रस्तुत मक्खन जी के दसों गीत अपनी गीतात्मकता में बेजोड़ हैं, लेकिन मुझे सबसे अधिक चमत्कृत किया उनकी गांव की मिट्टी में सनी भाषा ने। यह वह भाषा है जो इतनी सादा और देसी है कि उसे समझना अपने आप में कभी-कभी बड़ा क्लिष्ट होता है। आप देशज हुए बिना उसे न तो महसूस कर सकते हैं और न ही समझ सकते हैं।
कवि श्री कृष्ण शुक्ल ने कहा कि दादा के सभी गीत पढ़ने के बाद यह भी प्रतीत होता है कि सभी गीत अभी के लिखे हुए हैं। उनके गीतों में भी उनकी व्यंग की शैली स्पष्टतः दृष्टिगोचर होती है जो स्वाभाविक भी है। अपने दसों गीतों में मक्खन जी ने विविध विषयों पर लेखनी चलाई है। प्रवासी मजदूर हों, प्रेम हो, शोषण हो, अभाव ग्रस्त जीवन हो, चीन द्वारा सीमाओं पर अतिक्रमण के कारण उत्पन्न आक्रोश हो, या आपदकाल में सरकारी सहायता और घोषणाओं की वास्तविकता के धरातल पर स्थिति हो, हर विषय पर गीतों के माध्यम से आपने सशक्त अभिव्यक्ति की है। कुल मिलाकर सभी गीत वर्तमान परिस्थितियों से उत्पन्न सामाजिक परिदृश्य को अभिव्यक्ति देते हैं।
समीक्षक डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन ने कहा कि आदरणीय डॉक्टर मक्खन मुरादाबादी जी जोकि हास्य व्यंग के सशक्त हस्ताक्षर हैं,उनके द्वारा रचित नवगीत पढ़कर आश्चर्यचकित होना स्वाभाविक है। परंतु मुझे कोई आश्चर्य इसलिए नहीं है क्योंकि मेरा मानना है कि एक हास्य व्यंग का कवि जितनी खूबी के साथ अपनी बातों को इशारों इशारों में कहने पर पकड़ रखता है अर्थात प्रतीकों और बिंबो के प्रयोग करने का हुनर रखता है उसके लिए नवगीत कोई बड़ी बात नहीं है। क्योंकि इन दोनों चीजों की प्रधानता ही गीत को नवगीत बनाती है। आदरणीय मक्खन जी इसमें सिद्धहस्त हैं। ये ऐसे नवगीत हैं जो हम जैसे साहित्य के विद्यार्थियों को बहुत कुछ सीखने और समझने का अवसर प्रदान करते हैं।
युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि चूँकि श्रद्धेय मक्खन जी मूलतः एक व्यंग्य कवि हैं, यही कारण है उनके इन उत्कृष्ट गीतों में पूरी गंभीरता के साथ व्यंग्य का पुट भी दृष्टिगोचर होता है। बिंदी, गांधी बन्दर, सूरज जैसे विज्ञापन, चीनी गुब्बारा जैसे सशक्त एवं अनोखे बिंबों से सजी एवं आम जनमानस की भाषा से ओतप्रोत उनकी ये अभिव्यक्तियाँ यह दर्शा रही हैं कि उनके भीतर एक उत्कृष्ट गीतकार भी रहता है, जो उनके गौरवशाली रचना कर्म के इस मोड़ पर, सशक्त रूप से हमारे सम्मुख आया है। ये गीत इस बात की घोषणा कर रहे हैं कि अब दादा मक्खन जी की लेखनी से उत्कृष्ट गीतों की भी एक ऐसी अविरल धारा अपनी यात्रा का शुभारंभ कर चुकी है जो वर्तमान एवं भावी दोनो ही पीढ़ियों को प्रेरित करेगी।
युवा कवि मयंक शर्मा ने कहा कि मुझे लगा था कि दादा की व्यंग्य कविताएं पढ़ने को मिलेंगीं लेकिन जिस तरह देश भर में पिछले कुछ दिनों से अप्रत्याशित घटित हो रहा है उसी तरह इस पटल पर भी हो गया। ख़ैर दादा की लेखनी का ये नया रूप भी बहुत अच्छा है। हर गीत अलग तेवर और कलेवर का है।
समीक्षक डॉ अज़ीमुल हसन ने कहा कि आदरणीय डॉ मक्खन मुरादाबादी काव्य के आसमान पर चमकता हुआ एक ऐसा तारा हैं जिसकी चमक से व्यंगात्मक काव्य में मुरादाबाद सदा जगमगाता रहा है। आपके गीत वर्तमान समाज का दर्पण हैं जो समाज को उसका सही प्रतिबिम्ब दिखाने में पूर्ण रूप से सक्षम हैं। समाज पर व्यंग का एक ऐसा आघात है जिससे समाज अपने भीतर झाँकने पर विवश हो जाता है। हमें आशा है कि हमारा समाज आपके गीतों से सदा लाभान्वित होता रहेगा।
युवा कवियत्री हेमा तिवारी भट्ट ने कहा कि श्री कारेन्द्र देव त्यागी जी के गीत अप्रत्याशित भले ही हों पर उनके उच्च गुणवत्तायुक्त होने पर संशय किया ही नहीं जा सकता। वह हमेशा कहते रहे हैं कि मैं छंद के बारे में अधिक नहीं जानता या मैं छंद में नहीं लिखता लेकिन जब छंदबद्ध उनके गीत पटल पर आए तो लगा कि वास्तव में किसी विधा का ज्ञाता होने का दम्भ भरना और किसी विधा को सचमुच आत्मसात कर लेना दोनों ही कितनी अलग बातें हैं। भाव पक्ष हो अथवा कला पक्ष दोनों ही दृष्टि से आदरणीय मक्खन जी के गीत श्रेष्ठ हैं।
युवा कवियत्री मीनाक्षी ठाकुर ने कहा कि आदरणीय मक्खन मुरादाबादी आपके गीत एक नहीं कई कई बार पढ़े। जितनी बार पढ़े, हर बार नवीन गूढ़ रहस्य नज़र आये। नये विम्ब दिखे। आपके अद्भुत गीतों की चमकदार माला देखकर आँखें विस्मित हैं,अभी तक जब भी गीत पढ़े वे प्रिय, प्रियतमा ,साढ़, सावन ,भादो,प्रृकति चित्रण, विरह वेदना पर ही अधिकांशतः केंद्रित होते देखे हैं,शायद प्रथम बार ऐसे गीत पढ़ने को मिले हैं, जिनमें मन की पीड़ा व्यंग्य के तरकश से निकलकर घातक मार करती हुई लक्ष्य प्राप्त करती है। मुझे गीतों के बारे में बहुत कुछ नहीं पता परंतु इतना अवश्य ही पता चल गया कि गीत इतने सादगी भरे भी हो सकते हैं। निःसंदेह आपके ये गीत हर मौसम में गाये जायेंगे।
डॉ ग्रुप एडमिन और संचालक शायर ज़िया ज़मीर ने कहा कि मुझे कहने दीजिए कि कहीं से ऐसा नहीं लग रहा कि ये गीत किसी ऐसे रचनाकार ने लिखे हैं जिसने कई वर्षों से गीत नहीं लिखे या कभी गीत लिखे ही नहीं। गीतों की भाषा में और गीत का जो रंग है जो रूप है वो हमें गांव की तरफ ले जाता है। अक्सर गीतों के शब्दों में और शब्दों के बीच जो ख़ामोशी है, उसमें हमें गांव की मिट्टी की सौंधी-सौंधी खु़शबू महसूस होती है। गांव और शहर का जो रिश्ता है। वो खट्टा भी है और मीठा भी। जिसमें आशा भी है और निराशा भी, वह इतनी मज़बूती और इतने रचाव के साथ इन गीतों में बयान किया गया है कि देखते ही बनता है। गीत लिखते हुए किसी तरह के काव्यात्मक तकल्लुफ़ का कोई प्रयोग नहीं किया गया है। ज़ुबान आसान है, बहुत मुश्किल नहीं है। क्योंकि व्यंग के कवि हैं इसलिए गीतों में कहीं-कहीं व्यंग भी बहुत खूबसूरती से परोसा गया है। लेकिन वह इतना शुगर कोटेड है कि निगलते हुए कड़वाहट का एहसास नहीं होता।
-ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
"मुरादाबाद लिटरेरी क्लब"
मुरादाबाद 244001
मो० 7017612289
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