रमा बडी बहन थी ।अपने छोटे भाई का संरक्षण उसकी जिम्मेदारी थी जो माँपिता ने अंतिम समय मे सौपी थी।एक मातृवत् ही सदैव उसने अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया था।मगर भाई अनिल की शादी के बाद उसे बहुत जल्दी समझा दिया गया कि वह बहन है।अनिल की पत्नी विन्नी उसे बडा मानने के बदले ननद मानती थी।उसका विश्वास था कि ननद भाभी का भला नहीं चाह सकती हैं।इसी लिए जब भी उसने बडे होने केनाते समझाना चाहा उसे विन्नी ने अपने अधिकार क्षेत्र मे दखल ही माना।पदौन्नति केबाद उसे दूसरे शहर जाना पडेगा।यह सुनकर विन्नी की खुशी का ठिकाना न रहा।तीन वर्ष गुजर गये।इधर जब रमा अवकाश मे आयी तो देखा विन्नि की तबीयत खराब थी ।घर अस्तव्यस्त था।दोनो बेटियां टी वी देखने मे मस्त थी।विन्नी के बुलाने पर भी न सुनती।रमा ने दो तीन दिन में घर को व्यवस्थित किया।दोनों भतीजी बुआ से खुश थी।इधर विन्नी की तबियत भी कुछ सभल गयी थी। दोपहर मे टीवी के चैनल का शोर न था।वह उठी देखने के लिए।दूसरे कमरे मे रमा उसकी बेटियों को समझा यहीथीकि अब तुम भी बडी हो गयीं हो।घर एवं परिवार के लिए सब को सहयोग करना चाहिए।विन्नी की तबियत और खराब न हो इसकाध्यान रखना ।गृहिणी यदि स्वसथ न हो तो पूरा परिवार बिखर जाताहै।यदि तुम छोटे छोटे काम एवं अपने काम कर लोगी तो उसपर बोझ कम रहेगा और काम भी जल्दी होग।"
सुनकर विन्नी की आँखों से आँसू बहने लगे।उसकी पूर्व सोच आँसुओं मे बह गयीं।दौडकर वह दीदी कहती हुई उसके गले लग गयी।रमा थपथपाते हुए बोली,"सब ठीक हो जायेगा, तुम चिन्ता मत करो बस अपना ध्यान रखो"।
डा श्वेता पूठिया
मुरादाबाद
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