खिडकी पर सुगंध बारिश के बाद की ठंडी हवाओं को अनुभव कर प्रसन्न हो रही थी।अचानक उसकी नजर सडक पर जाते विकास पर पडी।उसका मन कडवाहट से भर गया क्योंकि उसके दिये घाव आज भी नासूर की तरह रिस रहे थे।उसकी आँखों के सामने पूरी घटना चलचित्र की तरह घूम गयीं।
नियुक्ति के बाद से ही वह कार्यालय मे अपने काम से काम रखती थी।सभी उसे घमण्डी समझते थे।पर इसीबीच विकास स्थानांतरित होकर आया।अक्सर लंच मे वह उसके पास आजाता था।कई दिनों तक वह उसकी उपेक्षा करती रही।मगर धीरे धीरे उसे उसकी बाते अच्छी लगने लगी।कार्यालय के बाद बाजार भी साथ जाने लगे।अब सुगंध को उसपर भरोसा सा होने लगा।एकदिन उसने उसके समक्ष विवाह का प्रस्ताव रख दिया।सुगंध तो तैयार थी।वह बोली, भईया से बात कर लो"।विकास बोल,"अब तुम्हारे बिना रहा नहीं जाता।भईया से पहले माँ को मनाना होगा।मगर हम अभी मंदिर मे शादी कर लेते है।फिर धीरे धीरे सब को मना लेगे।" मन्त्रमुग्ध सी वह उसकी हर बात मानती गयीं।पासके शहर मे जाकर मंदिर मे विवाह हो गया।तीन दिन की ट्रेनिग कहकर वह घर से आयी थी।तीन दिन पंख लगाकर उड गये।वापसी मे भी विकास ने हिदायत दी थीं अभी किसी से कुछ न कहे।वह यह भी मान गयीं।
वापसी के बाद दो दिन विकास आफिस नहीं आया।वह परेशान रही फोन भी बंद आ रहा था।आफिस ज्वाईन करने के बाद उसका पटल बदल गया।अब वह उसके पास कम आता,बात भी कम हो गयीं।एक हफ्ता गुजर गया।उससे रहा नहीं गया।लंच टाईम मे वह उठकर विकास केकमरे की ओर चल दी।दरवाजे पर पहुंच कर वह रूक गयी।अंदर से विकास कीअपने दोस्तों के साथ हँसने की आवाज आ रही थी।एक आवाज"और क्या अब उसके साथ लंच नहीं करते"।विकास की आवाज आयी,""क्यो पका रहे हो,यार,तुम सबने तो हार मान ली थी।गुप्ता जी बताओ न यार तुमने ही शर्त लगायी थी न,देखो उसको पटाया भी घुमाया भीऔर.....।मै शर्त जीत गया"। इससे अधिक वह सुन न सकी।वह केवल एक शर्त थी।
डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें