शुक्रवार, 17 जुलाई 2020

वाट्स एप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है । मंगलवार 7 जुलाई 2020 को आयोजित बाल साहित्य गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों प्रीति चौधरी, वीरेंद्र सिंह बृजवासी, कमाल जैदी वफ़ा, डॉ अनिल शर्मा अनिल, ओंकार सिंह ,डॉ पुनीत कुमार, सीमा वर्मा, मरगूब हुसैन अमरोही, डॉ श्वेता पूठिया, अशोक विद्रोही ,राजीव प्रखर , अशोक विश्नोई, नृपेंद्र शर्मा सागर, स्वदेश सिंह, कंचन खन्ना, मंगलेश लता यादव और डॉ प्रीति हुंकार की रचनायें ------



मेरे घर आगंन  में गूँजी
जब बेटी तेरी किलकारी
माँ बन मैंने ले गोद तुझे
जब थी, पहली रात गुज़ारी

तब याद  रही न प्रसव -पीड़ा
जब तू गोदी में मुसकायी
हुआ सुखद अहसास देखकर
तू है मेरी ही परछायी

मेरा अस्तित्व पूर्ण करके
तू जीवन में ख़ुशियाँ लायी
उस मधुर अहसास से अपने
मैं सारे दुःख भूल पायी

बेटी रूप सखी को पाकर
अपनी क़िस्मत पर इतरायी
बेटी होती घर की रौनक़
पाकर तुझे जान यह पायी

लोग समझते तुझे बोझ हैं
बात  बड़ी यह है दुखदायी
अस्तित्व किंतु इस दुनिया में
लेकर तू  ही उनका आयी

  प्रीति चौधरी
  गजरौला , ज़िला अमरोहा
----------------------------
    
रोज़  गुटरगूँ   करे  कबूतर
घर      छप्पर      अंगनाई
बैठ हाथ  पर दाना चुगकर
लेता         है       अंगड़ाई।

एक-एक  दाने  की खातिर
सबसे       करी       लड़ाई
सारा  समय गया  लड़ने में
भूख    नहीं     मिट    पाई
बैठ गया  दड़वे  में  जाकर
भूखे        रात       बिताई।
रोज़ गुटरगूँ--------------

बेमतलब  गुस्सा  करने  में
क्या    रक्खा    है     भाई
लाख टके की बात सभीने
आकर       उसे      बताई
छीना-झपटी पागलपन  है
नहीं       कोई      चतुराई।
रोज़ गुटरगूँ--------------

लिखा हुआ  दाने -दाने पर
नाम      सभी का      भाई
बड़े नसीबों से  मिलती  है
ज्वार,       बाजरा,     राई
खुदखाओ खानेदो सबको
इसमें        नहीं      बुराई।
रोज़ गुटरगूँ--------------

स्वयं  कबूतर  की पत्नी ने
उसको     कसम    दिलाई
नहीं करोगे  गुस्सा सुन लो
कहती       हूँ       सच्चाई
सिर्फ एकता  में बसती  है
घर   भर    की    अच्छाई
रोज़ गुटरगूँ-------------

तुरत कबूतर को पत्नी की
बात    समझ    में    आई
सबके  साथ गुटरगूँ  करके
जी   भर    खुशी    मनाई
आसमान  में ऊंचे उड़कर
कलाबाजियां          खाईं।
रोज़ गुटरगूँ-------------

  वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
 मुरादाबाद
9719275453
----------------------------

मेरे प्यारे दादा जी,
रहत सदा ही सादा जी।
रत्ती भर भी नही बनावट,
कहत बुरी है शान दिखावट।
सादा खाना खाते है,
सबसे खुश हो जाते है।
रखते है सबका ही ध्यान,
देते सबको  अच्छा ज्ञान।
कहते है कि हिंदुस्तान,
विश्व मे होगा बहुत महान।
जब तुम लोगे कहना मान,
पिज्जा बर्गर खाना छोड़ो,
दूध दही से मुंह न मोड़ो।
नित्य उठकर दौड़ लगाओ,
बादाम मुनक्का काजू खाओ।
बच्चे जब होंगें बलवान,
तभी बनेगा देश महान।
मेरे प्यारे दादा जी,
मेरा है यह वादा जी।
मैं लूंगा सब कहना मान,
देश हमारा बने महान।

कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
सिरसी (सम्भल)
9456031926
---------------------------------

हरी हरी है घास मुलायम
इस पर खेले कूदें हम
बूंद ओस की इसके ऊपर
मोती सी चमके चम चम
हरा रंग है खुशहाली का
पेड़ों की पत्ती डाली का
देख इसे सब खुश हो जाते
ध्यान रखें हम हरियाली का।

डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर
----------------------

कितनी प्यारी लगतीं चिड़ियाँ ।
जैसे हों वे सुंदर गुड़ियाँ ।
बड़े सवेरे ही उठ जातीं ,
चूं-चूं करके हमें जगातीं,
तरह-तरह के गाने गाकर
जमकर शोर मचातीं चिड़ियाँ ।।
कभी किसी से बैर न करतीं ,
लेकिन वे सबसे ही डरतीं ,
कोई उन्हें पकड़ने जाता
तो फुर से उड़ जातीं चिड़ियाँ ।।
सड़ी-गली चीज़ों को खातीं,
जलवायु को शुद्ध बनातीं,
मनमोहक क्रीड़ाएँ करके
सबको सुख पहुँचातीं चिड़ियाँ ।।
कभी न इनको मारो बच्चो,
इनके खेल निहारो बच्चो ,
इनको भी जीने का हक़ है
 होती हैं सुखकारी चिड़ियाँ।।

ओंकार सिंह ओंकार
1-बी-241 बुद्धिविहार, मझोला,
मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश) 244001
----------------------------

अभी फैली थी आंगन में
अब दीवार पर धूप चढ़ी
पता चला ना जाने कब
अपनी गुड़िया हुई बड़ी

जो भी घर से बाहर जाता
उसके पीछे लग जाती है
बाबाजी के साथ में जाकर
दाल का इक पत्ता लाती है
फिर उसको खाया करती है
दरवाजे में खड़ी खड़ी

जब भी कोई घर में आता
कुर्सी आगे कर देती है
दोनों हाथो के साथ साथ
मुंह में भी चिज्जी लेती है
च्यवनप्राश चाटती खूब
सौंफ चबाती पड़ी पड़ी

चाहे कुछ भी वक्त हुआ हो
हर पल तीन बजाती है
हाथ लगाए बिना ही इसमें
खुद चावी भर जाती है
अलबेली है गुड़िया अपनी
अलबेली है उसकी घड़ी

अपनी गुड़िया रानी तो
 हर्षोल्लास की निधि है
हम सब जिसके अंदर हैं
ऐसी वृहत परिधि है
इसके नेह से जुड़ी हुई
हम सबके रिश्तों की कड़ी

डॉ पुनीत कुमार
T -2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद - 244001
M - 9837189600
-----  ---------------------

 छोटा सा जुगनू  ,
           टिमटिमाता जाए ।
  छोटा सा जुगनू  ,
               गुनगुनाता जाए ।
 हो अंधेरा कितना भी पर ,
             एक पल की रोशनी लाए ।
 संग मिले जब साथियों के ,
             चाँदनी सी छिटकाए ।
नन्हा हूँ पर हुनरमंद हूँ ,
           सबको ये बतलाए ।
गहरी काली रातों को ,
           चमक - चमक चमकाए ।
नन्हे चेहरों पर ये नन्हा ,
           मुस्कुराहट ले आए ।।

 सीमा वर्मा
मुरादाबाद
--------- -----------------

मछली देखो मछली देखो, है कितनी मतवाली ये।
पानी में अठखेली करती,  सबसे कैसी निराली ये।

रंग बिरंगी सीधी साधी, मन को कितनी भाती ये।
कितनी भोली कैसी नादां, बच्चों को बहलाती ये।

बाहर नहीं रह  पाती ये तो, पानी की बस रानी ये।
पानी में फुर्र से ये देखो, कैसे दूर चली जाती है ये।

पानी में साम्राज्य इसका, है सबको दूर भगाती ये।
हाथों में आ कर बेचारी, बेबस कैसे  बन जाती ये।

बच्चे,बूढ़े और जवान, है दिल को सबके भाती ये।
मछली देखो मछली देखो, है कितनी मतवाली ये।

मरग़ूब अमरोही
दानिशमन्दान-नई बस्ती,
 अमरोहा
  मोबाइल-9412587622
-------------------------------

बडी सयानी
सब बच्चों के
मन की रानी।
लाल घाघरा
लाल चुनरिया
हाथ में चूडी़
माथे पर बिन्दिया।
मनभावन है रूप
जो इसका ले
जायेगा गुड्डा राजा।
रानी बन इठलाये गुडि़या।
सब बच्चों को प्यारी गुडिय़ा।।

डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद
--------------------------

गिल्लू और गिलहरी चिंकी
मेरी छत पर आते हैं
चिड़ियों को जो दाना डालूं
उसको चट कर जाते हैं
        गोपू और बंदरिया कम्मो
        खो-खो बोला करते हैं
        खाने पीने की तलाश में
        घर-घर डोला करते हैं
गोपू बन्दर ने गिल्लू से
पूछा एक दिन बातों में
"तुम चिंकी संग कहां चले
जाते हो ! हर दिन रातों में"?
       हमने श्रम और बड़े जतन से
       घर एक यहां बनाया है !
       कपड़ों की कतरन, धागों से
       मिलकर उसे सजाया है !!
गोपूऔर कम्मो दोनों को
तनिक बात ये न भायी
खिल्ली लगे उड़ा ने दोनों
उनको बहुत हंसी आई !!
       किंतु ये क्या ! काली काली
       नभ घनघोर घटा छाई
       गरज गरज कर बरस उठे घन
       चली बेग से पुरवाई
भीग रहे थे गोपू कम्मो
रिमझिम सी बरसातों में
बड़े चैन से गिल्लू चिंकी
बैठे थे अपने घर में
       बच्चों ! कर्म करो तो जग में
       बड़े काम हो जाते हैं
      गोपू जैसे बने निठल्ले
      समय चूक पछताते हैं !!

  अशोक विद्रोही
  82 188 25 541
 412 प्रकाश नगर मुरादाबाद
-----------------------------

खन-खन करती गुल्लक देखो,
लगती कितनी प्यारी।

बूँद-बूँद से भरती गागर,
नुस्खा बहुत पुराना।
आने वाले सुन्दर कल का,
इसमें ताना-बाना।
कठिन समय में देती है यह,
सबको हिम्मत भारी।
खन-खन करती गुल्लक देखो,
लगती कितनी प्यारी।

जन्म-दिवस या त्योहारों पर,
जो भी पैसा पाओ।
उसमें से आधा ही खर्चो,
बाकी सदा बचाओ।
बच्चो, समय-समय पर इसको,
भरना रक्खो जारी।
खन-खन करती गुल्लक देखो,
लगती कितनी प्यारी।

अपने सारे दल को जाकर,
इसके लाभ बताओ।
फिर सब मिलकर मोल बचत का,
जन-जन को समझाओ।
हमें पता है बच्चा पलटन,
कभी न हिम्मत हारी।
खन-खन करती गुल्लक देखो,
लगती कितनी प्यारी।

- राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद
-----------------------------

बचपन जो
जो आज भी है
परन्तु
डरा -डरा सा
भय से त्रस्त
टूटे बिखरे चूर -चूर होते,
खिलौनों को देखता हुआ
स्वतंत्रता दिवस की
अगले पायदान की ओर
चढ़ता हुआ,
अपने ही घर के कौने में
कहीँ उपेक्षित सा
भविष्य को उग्रवाद
अलगावाद,असमानता
जैसी समस्याओं से
घिरा हुआ
कुम्हलाया सा उसका तन,
आज भी है भोला बचपन ।
     
अशोक विश्नोई
 मुरादाबाद
 मो० 9411809222
-------------------------------

रोज सुबह तुम जल्दी जागो।
तितली के पीछे मत भागो।
साफ सफाई का हो ध्यान।
मल-मल नित्य करो स्नान।।

प्रभु के चरणों में सिर नवाओ।
हँसते-हँसते पढ़ने जाओ।
पढ़ लिख कर तुम बनो महान।
ऊँची रखना देश की शान।।

आपस के सब द्वेष भुलाकर।
चलना सबको साथ मिलाकर।
बढ़े पिता माता का मान।
मिले तुम्हे अच्छी पहचान।।

कभी किसी को नहीं सताना।
सच्ची सदा ही बात बताना।
लेकिन ना करना अभिमान।
सबका करना तुम सम्मान।।

मानवता के हित के काम।
इनमें मत करना विश्राम।
सदा बढ़ाना अपना ज्ञान।
इसको निज कर्तव्य मान।।

नृपेन्द्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा मुरादाबाद
--------------------------

 काश कभी  ऐसा होता
 गुब्बारों का मेला लगता

 रंग- बिरंगी गुब्बारों से
 आसमान पूरा  भरता

गुब्बारों की दुनिया होती
सबसे प्यारी सबसे न्यारी

रोती मुन्नी हंसने लगती
लेकर गुब्बारे  हाथ में

गैस भरे गुब्बारे संग
दूर देश की सैर करते

रंग भरे आसमान  से
उछल कूद शोर मचाते

काश कभी ऐसा होता
गुब्बारों का मेला लगता

स्वदेश सिंह
सिविल लाइन्स
मुरादाबाद
-----------------------------------

रिद्धि तो  गुड़िया के संग ,खेल रही थी घर घर
आया तभी एक चीटा  उसने पैर मे काटा चढकर।

रिद्धि भागी मारी जोर से, चप्पल उसके सर पर
नही बचेगा मुझसे चीटा ,वार किया है मुझपर ।

दूर खडी़ नानी ने देखा ,युद्ध हुआ दोनो मेंजमकर
बोली अच्छा किया ये तुमने, पलटवार दुश्मन पर ।

अब रिद्धि को मिला साथ ,तो टूट पडी चीटों पर
बचा न कौई बिल मे , रिद्धि भारी पडी सभी पर ।

तभी अचानक देखा, चली आ रही चीटी देहरी पर
लगी उठाने चप्पल, उसे मारने को थी तत्पर ।

नानी बोली ना , इसे न मारो जाने दो इसको घर।
काटेगी मुझको ये फिर , कैसे जाने दूं इसको घर ।

नानी बोली बेटा ये दाना लेकर जाती है अपने घर
जैसे मम्मी लाती टाफ़ी  तुम खाती मुंह भरकर ।

 रिद्धि पडीं सोच में,बच्चे होंगे भूखे इसके घर पर
दौड लगाकर डिब्बे से शक्कर लाई मुठ्ठी भरकर ।

शक्कर पाकर चींटी दौडी़   मुंह मे भर भरकर
रिद्धि देख रही थी जब वो दाना भर जाती थी घर ।

तभी बजी घंटी  वो दौडी मम्मी आई  टाफी लेकर
मम्मी  मैने सीख लिया है कैसे टाफी आती घर पर।

अब से मै चींटी को दूंगी शक्कर  बच्चे खायेंगे जीभर कर
ना मारुंगी उनको  लेकिन चीटा को मारूंगी जीभर ।

मंगलेश लता यादव
जिला पंचायत कंपाउंड
कोर्ट रोड मुरादाबाद
9412840699
---------------------------------

नाना जी याद सताती
सोते सोते मैं जग जाती
जब नाना थे पास हमारे
पूरे होते सपने सारे
जो कहते थे वही मंगाते
रबड़ी हमको खूब खिलाते
रात को कहते एक कहानी
एक था राजा एक थी रानी
एक बार हम फिर से भाई
नाना के घर जायँगे
जो सपने रह गए अधूरे
पूरा करके लायेंगे।

डॉ प्रीति हुँकार
 मुरादाबाद
------------------------------

1 टिप्पणी: