रविवार, 12 जुलाई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष सुरेन्द्र मोहन मिश्र के व्यक्तित्त्व एवं कृतित्व पर "प्रगति मंगला" संस्था एटा द्वारा ऑनलाइन साहित्यिक परिचर्चा .....


प्रगति मंगला साहित्यिक संस्था एटा के तत्वावधान में ऑनलाइन  साहित्यिक परिचर्चा के क्रम में  शनिवार 11 जुलाई 2020 को राष्ट्रकवि उमाशंकर राही वात्सल्य धाम वृन्दावन के संयोजन व संचालन में मुरादाबाद के ख्याति लब्ध कवि व पुरातत्व वेत्ता स्वर्गीय श्री सुरेन्द्र मोहन मिश्र के कृतित्व व व्यक्तित्व पर परिचर्चा आयोजित की गयी। मुख्य अतिथि  मथुरा के वरिष्ठ साहित्यकार डा. रमाशंकर पाण्डेय तथा विशिष्ट अतिथि मुरादाबाद के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी रहे ।अध्यक्षता एटा के वरिष्ठ समालोचक व चिन्तक आचार्य डा. प्रेमीराम मिश्र ने की।
 
संस्था के संस्थापक कवि बलराम सरस ने सभी आगन्तुक अतिथियों व वक्ताओं का स्वागत करते हुए संस्था की गतिविधियों और आयोजन की रूपरेखा पर प्रकाश डाला।
संयोजक उमाशंकर राही ने श्री सुरेन्द्र मोहन मिश्र का परिचय दिया।उन्होंने बताया कि सुरेन्द्र मोहन मिश्र का जन्म 22 मई 1932 को मुरादाबाद जिले के चन्दौसी में हुआ था। वह बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। मात्र चौदह वर्ष की अवस्था में ही आपका दार्शनिक गीतों का पहला संग्रह 'मधुगान' पूर्ण हो गया था। 15 अप्रैल 1955 में शादी के दूसरे दिन ही मिश्र जी ने संग्रहालय की स्थापना की।फक्कड़ स्वभाव के व्यक्ति थे मिश्रा जी। झोला डालकर निकल पडते थे पुरातात्विक चीजों को ढूंढ़ने। मंचो पर बेशक हास्य कवि के रूप में विख्यात थे किन्तु वह मूलतः गीतकार थे।
मुख्य वक्ता चन्दौसी के श्री अतुल मिश्र ने  श्री सुरेन्द्र मोहन के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि सुरेन्द्र मोहन मिश्र का व्यक्तित्व इतना विशाल था कि मुरादाबाद के विशाल कवि सम्मेलन में प्रख्यात ओजस्वी कवि बालकवि बैरागी ने कहा था "मैं या मालवा का कोई कवि जब चन्दौसी के स्टेशन से गुजरता है तो सबसे पहले इस पावन धरती की मिट्टी को अपने माथे से लगाता है। जानते हो क्यों? क्योंकि उस सुरेंद्र की धरती है जिसने खुद जलकर सैकड़ों दियों को रोशनी दी है।" हास्यकवि सुरेन्द्र मोहन मिश्र कवि साहित्यकार के अतिरिक्त पुरातत्ववेत्ता भी थे।उनका पहला पुरावशेष एक हस्तलिखित ग्रन्थ था जो वे मुरादाबाद के एक पुराने कुएं से निकाल कर लाए थे।इसके बाद तो प्रागमौर्य, मौर्य,गुप्त और कुषाण कालीन पुरावशेष उन्हें आकर्षित करने लगे। कवि सम्मेलन से लौटने के पश्चात वह खंडहर ,वीरानों और प्राचीन टीलों से पुरावशेष एकत्रित करने निकल पड़ते थे।
 मुरादाबाद के  वरिष्ठ साहित्यकार डा. मनोज रस्तोगी ने  श्री सुरेन्द्र मोहन मिश्र के जन्म, शिक्षा व काव्ययात्रा पर विस्तार से प्रकाश डाला।उन्होंने बताया  कि सुरेन्द्र मोहन की पहली कवित्रा मात्र सोलह वर्ष की उम्र में दिल्ली के दैनिक सन्मार्ग में वर्ष 1948 में प्रकाशित हुई थी।व्यवसायी पिता लक्ष्मी उपासक थे और वह सरस्वती उपासक ।पिता पुत्र में यही वैचारिक संघर्ष रहता था।1951 में उनका पहला संग्रह मधुगान 1955 में कल्पना कामिनी प्रकाशित हुए।इसके बाद वह पुरातत्व के क्षेत्र में आ गये।उन्होंने ग्रन्थों को शोध का विषय बनाया।उन्होंने एकांकी नाटक भी लिखे।
 कवि मंजुल मयंक (फीरोजाबाद) ने सुरेन्द्र मोहन मिश्र के साथ काव्यमंचो की यात्रा के संस्मरण ताजा किये।मंजुल ने बताया एक दम गोरा चिट्टा चेहरा, छरहरा वदन ,खूबसूरत बोलती हुई आंखें ऐसा चमत्कारी व्यक्तित्व था उनका।
नई दिल्ली की आशा दिनकर आस ने कहा  एक महान गीतकार, शानदार कवि, पुरातत्ववेत्ता की जीवनी से परिचित कराने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। आदरणीय सुरेन्द्र मोहन मिश्र जी की अद्भुत लेखन शैली और देश की प्राचीन धरोहरों की सुरक्षा के लिए  किये गए अनन्य प्रयासों को सादर नमन ।
गाजियाबाद की कवियत्री सोनम यादव ने कहा कि साहित्य के साधक, प्रकृति के चितेरे, अद्भुत व्यक्तित्व के धनी आदरणीय श्री सुरेन्द्र मोहन मिश्र जी को जानकर, पढकर बहुत अच्छा लगा ऐसे अविस्मरणीय चरित्र हमारे पथ प्रदर्शक है हम उस परंपरा के अनुयायी हैं यह सब सोच कर ह्रदय रोमांचित हो जाता है
 नोएडा के साहित्यकार डा. सतीश पाठक ने भी अपने संस्मरण साझा करके जहां अपनी स्मृतियों को ताजा किया वहीं स्मृतिशेष सुरेन्द्र मोहन मिश्र के व्यक्तित्त्व पर भी रोशनी डाली ।
     
 मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डा. रमाशंकर पाण्डेय (मथुरा)ने कहा कि हास्य की रसधार बहाने वाले हास्यावतार सुरेन्द्र मोहन मिश्र गीतकार भी अच्छे थे।सामाजिक विसंगतियों को उन्होंने हास्य का विषय बनाया।कम शब्दों में बहुत कुछ कह देना श्रोताओं को तरंगायित कर देना यह उनकी विशेषता थी।वे श्रोता को सीधे कविता से जोड़ते थे। उनके प्रभाव शाली व्यक्तित्व का असर उनकी कविताओं में भी दिखता था।
अध्यक्षीय उद्बोधन में आचार्य डा. प्रेमीराम मिश्र ने कहा -प्रगति मंगला साहित्यिक मंच देश के चर्चित सुविख्यात कवियों पर परिचर्चा आयोजित कर सराहनीय कार्य कर रहा है। इसी क्रम में स्व. श्री सुरेन्द्र मोहन मिश्र के व्यक्तित्व व कृतित्व पर चर्चा कर उन्हें नयी पीढ़ी के साहित्कारों व कवियों से परिचित कराया है। सुरेन्द्र मोहन मिश्र जी जैसे पुरातात्त्विक चेतना से संगुफित कवि की कालजयी स्मृतियों को साकार करने का सुअवसर मिला।मैं यह जान कर आश्चर्यचकित हूं कि एक हास्य व्यंग्य का कवि पुरातात्विक जिज्ञासा का इतनी अधिक दीवानगी के साथ जीवन भर निर्वाह करता रहा। काव्यनाटक के अतिरिक्त उनकी पुरातात्विक महत्व की दुर्लभ 60पाण्डुलिपियाँ उनके कृतित्व का प्रमाण है।
अन्त में संस्था की पटल प्रशासक व साहित्यकार श्रीमती नीलम कुलश्रेष्ठ गुना (मध्य प्रदेश) ने सभी आगन्तुकों का आभार व्यक्त किया।
             

2 टिप्‍पणियां:

  1. मुरादाबाद के प्रख्यात साहित्यकार श्री शिव अवतार सरस जी की टिप्पणी
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    मैं , छात्र जीवन से ही श्री मिश्र जी से जुडा रहा. दिल्ली प्रवास के समय मुरादाबाद आने पर मेरे और श्री बहोरी लाल शर्मा से मिलने घर पर आते रहे. हिंदी साहित्य निकेतन संभल द्वारा 1964 में आयोजित कवि सम्मेलन में उनकी और चंदोसी के अन्य कवियों के रुकने की व्यवस्था हमने ही की थी. मुरादाबाद में उनके निधन की सूचना पर मैंने और श्री जगदीप भटनागर ने ही दुलहंडी के दिन, अंतिम संस्कार के लिए आवश्यक उपकरण जुटाए थे.वह इस तथ्य से खुश थे कि मैंने बाल साहित्य सृजन को अपना लक्ष्य बनाया था.उनका अहेतुक स्नेह मुझे सदैव प्राप्त रहा. सादर नमन.

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