बुधवार, 29 जुलाई 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा ---कुछ तो लोग कहेगें


        पति सेअनेक बार पिटाई ,ताने,लातघूंंसे रोज खाने के बाद भी शिखा अपने रिश्ते को निभा रही थी। एकदिन जब उसने  शराब के नशे मे डन्डे से उसके सिर पर वार किया, खून की धार बह निकली तो खून के साथ उसके सब्र का बाँध भी बह गया।सास जिठानी दूर खड़ी रही।जैसे तैसे मोबाइल उठा 100 नम्बर पर कॉल की।पुलिस टीम मदद को पहुंची।पट्टी करवाई।उसके घरवालों को फोन किया।विधवा मां बस पकड कर पहुंची क्योकि भाई ने साथ जाने से मना कर दिया।बेटी को घायलावस्था मेही लेकर लौटी।पुलिस घरवालों को चेतावनी दे गयी क्योंकि शिखाका पति फरार हो चुका था।घर पर भइया भाभी भतीजोंं सभी ने उसकी हालत देखी।सभी को सहानुभूति थी।मगर जैसे जैसे सिर का जख्म भर रहा था वैसे वैसे भाभियोंं के तानो से दिल का जख्म गहरा हो रहा था।माँ कहती,"सब ठीक हो जायेगा।चुप रहाकर"।वह समझ नहीं पा रही थी कि क्या स्त्री होना ही उसका गुनाह है?फिर एक दिन महिला थाने मे उसकी मुलाकात शशि दीदी से हुई।शशि दीदी ने उसका दाखिला एक कम्प्यूटर सेंटर पर करवाया।छह माह बाद आज वह एक कम्पनी में जाँब कर रही है।अलग कमरा किराए पर लेकर रह रही है।मगर पास पड़ोस के ताने उसका पीछा नहींं छोड़ते।वह सोच रही थी कि उसका कौन सा निर्णय गलत था,वहां न रहनेका या यहां रहने का।

डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद

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