बुधवार, 1 जुलाई 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की कहानी -----"सीख लॉकडाउन की"


        सुबह से किचन के काम निपटाते निपटाते सरला थक चुकी थी।क्या बच्चे,क्या बुजुर्ग और क्या मियाँ जी सबकी अलग-अलग फरमाइशें। लॉक डाउन सबके लिए फुर्सत के पल लेकर आया था लेकिन एक हाउसवाइफ के लिए शायद सबसे व्यस्ततम दिन।अभी बाथरूम में धोने के लिए कपड़ों का ढेर लगा था और एहतियातन मेहरी की छुट्टी कर दिये जाने से झाड़ू और पोछा भी सरला की राह तक रहे थे।आज क्लब की सखियों ने ऑनलाइन सिंगिंग मीट रखी थी,वह भी सज सँवरकर उसमें प्रतिभाग करना चाहती थी।पर कैसे....
    पतिदेव ब्रेकफास्ट डटकर ऊपरी मंजिल में वर्क फ्राम होम की कम्प्यूटर टेबल पर बैठ चुके थे।बच्चे ग्राउंड फ्लोर में ड्राइंग रूम में दादा दादी के साथ बैठकर टीवी देख रहे थे।दादा दादी के लाड़ले रोहित और रोनित दोनों जुड़वां भाई इन्टर फर्स्ट इयर में थे और लैपटॉप पर एक दो घण्टे की ऑनलाइन क्लास के अतिरिक्त पूरा दिन टी.वी और मोबाइल पर ही दोनों अपना टाइम पास कर रहे थे।सरला मोबाइल के लिए टोकती तो वे दोनों स्कूल एसाइनमेंट की जरूरत बताने लगते।ज्यादा टी वी देखने के लिए टोकने पर दोनों चीखते,"मॉम बाहर निकलना नहीं है,अब इंटरटेनमेंट के लिए टीवी तो देखने दो।आप का बस चले तो लेक्चर दे दे कर हमें हिमालय की गुफाओं में तपस्या करने के लिए भेज दो।"
    दादी सपोर्ट करती,"अरे बच्चे हैं।ये ही तो मौज मस्ती के दिन हैं इनके।पर इस पत्थरदिल को भी बच्चों को डाँटे बगैर चैन नहीं मिलता।"और बच्चे माँ को चिढ़ाते हुए दादी के गले लग जाते,"वी लव यू दादी माँ।एक आप ही हमारा ख्याल रखती हो।वरना माँ तो हम पर अत्याचार के सारे रिकॉर्ड तोड़ दे।"
    डाइनिंग टेबल पर नाश्ता कर रही सरला ने कुछ सोचकर दोनों बेटों को आवाज दी,"रोनित,रोहित दोनों यहांँ आना बेटा।"उसका नाश्ता खत्म होने वाला था,पर बच्चों ने न तो कोई उत्तर दिया न ही खुद आये।सरला को इसकी आदत थी।एक बार में तो उसके बेटे कभी सुनते ही नहीं थे।उसने फिर से पुकारा,"पापा को बताऊंँ क्या कि तुम मेरी बात नहीं सुन रहे हो।"अक्सर अजमायी जाने वाली यह तरकीब काम कर गयी।बस एक पापा के नाम से ही दोनों डरते थे।
    दोनों ने एहसान सा किया डाइनिंग हॉल में आकर,"हाँ,बताओ।क्या कह रही हो आप?" "कितनी अच्छी मूवी आ रही है।पर आप देखने नहीं दोगे।"
      सरला ने चाय का कप प्लेट पर रखते हुए दोनों से लगभग निवेदन सा किया," मम्मी के प्यारे बेटे।प्लीज अपने अपने कमरों की डस्टिंग ही कर दो,बच्चों।मम्मी की थोड़ी मदद हो जायेगी।आज मम्मी को बहुत काम है।"
      दोनों ने बड़े ही अजीब से फेस बना कर रिएक्ट किया।रोनित बोला,"ओ नो मम्मी!क्या कह रही हो आप।हम ये मेड वाले काम करेंगे।" रोहित का स्वर थोड़ा तेज था,"क्या मम्मी! कितने क्रूअल हो आप।अपने छोटे छोटे बच्चों से घर के काम कौन मम्मी कराती है।हम नहीं कर रहे कोई डस्टिंग वस्टिंग।अपना काम खुद करो।जैसे आप हमको कहते हो पढ़ाई के टाइम।आपको करना ही क्या है पूरा दिन।हमें तो अभी ऑनलाइन क्लास भी अटैण्ड करनी है।"
      तभी ठीक रोहित के पीछे से प्रकट होती दादी बोली,"भइया ऐसी माँ भी नहीं देखी मैं ने।अपने आराम के चक्कर में बच्चों से काम कराएगी।(बच्चों की तरफ देख कर...)तुम कुछ नहीं करोगे,बच्चों।मुझे बता क्या काम करना है?हम पर करले जितने जुलम करने हैं।इन बच्चों पर न कर।यही चिढ़ है न कि बच्चे मुझसे प्यार करते हैं।हे भगवान तू ही देख ले कैसे कैसे सताती है ये महारानी मुझे।"
      दादी ने घड़ियाली आँसू बहाते हुए आँचल से मुँह पोछा।सरला अवाक थी।एक आसान उपाय का इतना भयानक हश्र सोचकर उसकी आँखे भर आयी थी।बच्चे भी अब असहज महसूस कर रहे थे।दादी की ओवर एक्टिंग ने माँ की प्रार्थना की ओर उनका हृदय झुका दिया था।पर अब माँ की तरफदारी करने का मतलब था,दादी की एक हफ्ते की नाराज़गी मोल लेना।आँखों में आँसू लिए सरला अपनी प्लेट उठाकर रसोई की ओर चल दी। रोहित ने बात बदलते हुए कहा,"चलो दादी आप टी वी देखो।मम्मी अपने आप करेगी काम।मेरी दादी क्यों करेगी काम।"
      सरला सिंक में रखे बर्तन धोने लगी।कई विचार उसके ख्याल में आते और जाते थे।
"एक औरत की दुश्मन एक औरत ही होती है, बिल्कुल सच बात है।"
 "संयुक्त परिवार के  बड़े फायदे हैं,मैं भी मानती हूँ पर ऐसी जली कटी बातों का क्या।"
  "क्या एक हाउसवाइफ की कोई खुशी नहीं होती।"
   "क्या एक औरत कभी कुछ पल अपने लिए अपने तरीके से नहीं जी सकती?हर वक्त काम काम काम"
   "एक घर के सभी सदस्य मिल बांटकर घर के काम क्यों नहीं कर सकते?"
   "मम्मी जी की खुश बनाये रखने के चक्कर में मेरी औलाद मेरे हाथों से निकलती जा रही है।पर मैं क्या करूँ?"
       ये विचारों की लड़ी कुछ और लम्बी होती कि तभी बाहर "आलू लो,प्याज लोओअअ...,टमाटर लो,लौकी लोओअअ..." की आवाज ने उसका ध्यान खींचा।उसे याद आया,शाम के लिए सब्जी नहीं है।वह हाथ धोकर फटाफट मुंँह पर मास्क लगाकर और आंगन में रखी बाल्टी लेकर गेट की ओर लपकी।एक 10-11साल का लड़का सब्जी की रेहड़ी धकेलता एक अधेड़ औरत के साथ कॉलोनी में सब्जी बेचने के लिए आया था। सरला सावधानी के तहत बाल्टी लेकर गयी थी और सब्जियांँ तुलवाकर बाल्टी में रखवा रही थी।सब्जियाँ तुलवाते हुए उसने उस औरत से कहा,"कैसी माँ हो?इतनी ख़तरनाक बीमारी फैली हुई है और तुम इतने छोटे बच्चे को गली गली घुमा रही हो।"
      वह बोली,"तुम ठीक कै री हो,भैनजी।पर गरीब आदमी क्या करे। बीमारी से तो बाद में मरेगा,पर भूख से पैले मर जागा।भीख मांगना सीका नहीं हमने। बदकिस्मती से मेरा आदमी लाकडोन के चलते शहर में फंसा हुआ है।पाँच बच्चे हैं मेरे।येई सबसे बड़ा है।ये अकेले ना आने देता।कैता है मम्मी दोनों मिलके काम करेंगे तो हिम्मत रएगी।ये छटे में पड़ता है,सब बात जानता है।कपड़े का माक्स बनाया है।अपने लिए भी,मेरे लिए भी।साबुन और पानी का डब्बा रेहड़ी पे रख के चलता है।ऊपरवाले की दया है।कोई गलती करूँ तो बाप बन के डाँटता है,पर कहीं थक न जाऊँ इसलिए रेहड़ी नहीं खींचने देता।"
      सरला उस बेटे के प्रति अपार श्रद्धा और स्नेह से भर गयी थी। सब्जियाँ तुल चुकी थी।उसने हिसाब पूछा।बेटा वाकई समझदार था।तुरन्त बोला,"एक सौ पैंतालिस रूपये हुए आन्टी जी।हो सके तो खुले पैसे देना।पैसों की लौट फेर में बीमारी न लौट फेर हो जाय।"सरला उसकी ओर देखकर सहज ही मुस्कुरा दी थी।सब्जी की बाल्टी बाहर के बाथरूम में धोने के लिए रखकर वह जैसे ही खुले पैसों के लिए अपने बेटों को आवाज देती,उसने देखा रोहित खुले पैसे लिये सीढ़ियों से नीचे उतर रहा था।रोनित छज्जे में खड़ा नीचे सड़क पर खड़ी उस रेहड़ी और उसके मालिक को देख रहा था।सरला ने रोहित से पैसे लेकर सब्जी वाली को दे दिये।
      "आलू लोअअअ..प्याज लोअअअ.."की कड़क आवाज पूरे आत्मविश्वास के साथ गली में आगे बढ़ चुकी थी।सरला बाहर बाथरूम में सब्जियों और खुद को सैनिटाइज करने की प्रक्रिया में लग गयी।
       करीब आधे घण्टे बाद जब वह घर के अन्दर पहुँची तो ड्राइंग रूम,जहांँ दादा दादी बैठे थे,को छोड़कर सभी कमरे दोनों भाइयों ने मिलकर बिल्कुल नीट एण्ड क्लीन कर दिये थे।सरला भावुक होकर कुछ कहती इससे पहले ही दोनों भाइयों ने इशारों में उसे ड्राइंग रूम की सफाई और दादी की उपस्थिति याद दिलायी।सरला की आँखों में वही श्रद्धा और दुलार तैरने लगा जो अभी कुछ देर पहले सब्जी वाली के बेटे के लिए उमड़ रहा था।उसके बेटे अनजान होने का मुखौटा लगाकर पढ़ने के लिए अपने अपने कमरों में जा चुके थे।

✍️ हेमा तिवारी भट्ट
मुरादाबाद 

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