बुधवार, 1 जुलाई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की लघुकथा ---- आस्था


‌पूजा अर्चना करके,अनिल जी और मैं,जब मंदिर से बाहर आए,तो देखा --- अनिल जी की चप्पल गायब थी।अपराध बोध की भावना से मन भारी होने लगा।अनिल जी हमारे बचपन के सहपाठी थे और कई साल बाद हमारे घर आए थे। मैं ही उनको अपनी जिद से मंदिर ले कर आया था। मैंने आस पास निगाह दौड़ाई,लेकिन चप्पल कहीं नहीं थी।अनिल जी ,जो अभी तक शांति से खड़े थे, मुस्कराते हुए बोले -- ये तो अच्छा हुआ,चप्पल बिल्कुल नई थी,जिस जरूरत मंद को मिली होगी, खुश हो गया होगा।
‌मैंने अनिल जी से कहा -- आप यहीं रुकिए, मैं बाहर से एक नई चप्पल खरीद कर लाता हूं।
‌ ----- नहीं ...नहीं,उसकी कोई जरूरत नहीं है ।
 हम प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं, ईश्वर ने मुझे एक अवसर दिया है - धरती पर नंगे पैर चलने का। लगता है,उसने हमारी प्रार्थना सुन ली ।पहले मेरे माध्यम से किसी गरीब का भला करवाया और फिर प्रकृति से मुझे मिलवाया।
  अनिल जी की बातों ने मुझे नि:शब्द कर दिया। मैंने उनकी आस्था को मन ही मन ही नमन किया और उनके साथ घर वापस आ गया।

 ✍️ डॉ पुनीत कुमार
T - 2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद 244001
M- 9837189600

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