दो बार चक्कर काट चुका था वो पर दोनों बार ही बाॅस उसे नहीं मिले । बार - बार काम बीच में छोड़ बाॅस के कमरे के चक्कर लगाना उसे पसंद नहीं है पर आज कुछ मजबूरी ही ऐसी थी कि उसे ऐसा करना पड़ रहा था । परसों उसके इकलौते साले साहब के इकलौते पुत्र की वर्षगाँठ है और श्रीमतीजी ने पिछले सप्ताह ही वारंट निकाल दिया था कि सपरिवार सुबह - सुबह पहुँचने का आग्रह क्रमशः उनके मायके का प्रत्येक प्राणी कर चुका है ।
मार्च का महीना , आॅफिस में आॅडिट चल रहा था ।कई महत्वपूर्ण डाॅक्यूमैंट्स ( काग़ज़ पत्र ) उसकी निगरानी में थे । बाॅस ने इशारों - इशारों में उसे समझा दिया था कि उसकी उपस्थित आॅफिस में अनिवार्य है ।वैसे वो स्वयं भी अनावश्यक छुट्टियों के पक्ष में नहीं रहता था । आॅफिस में उसका ओहदा बहुत सम्माननीय था । हर कोई उसकी कार्य कुशलता की प्रशंसा करता । ऐसे में बाॅस के पास छुट्टी माँगने जाने का मतलब था बिना बात के पंगा लेना पर इधर कुआँ उधर खाई जैसी परिस्थिति में मरता क्या ना करता ।
चपरासी ने आकर बाॅस की उपस्थिति की सूचना दी तो हिम्मत जुटा उसने कदम आॅफिस की तरफ बढ़ाए , लाॅबी में लगे टी वी पर समाचार प्रसारित हो रहे थे । देश की सबसे ऊँची चोटी सियाचिन ग्लैशियर और तिब्बती सीमा पर रहने वाले सैनिकों पर कोई विशेष प्रसारण आ रहा था । किसी अनिश्चित खतरे की बात जानकर सुरक्षा एजेंसियों और सेना ने जवानों की छुट्टियां कैंसिल कर दीं थीं । इनमें से कई जवान ऐसे भी थे जो लंबे समय से घर नहीं गए थे ।संवाददाता बता रहा था कि कैसे एक जवान के बीमार पिता ने आई सी यू से वीडियो बना कर अपने बेटे से हिम्मत बनाए रखने और देश सेवा में डटे रहने की अपील की थी । कुछ जवानों के इंटरव्यू भी आ रहे थे जो बता रहे थे कि छुट्टी से ज्यादा उन्हें देशसेवा आनंद देती है ।
वो बाॅस के आॅफिस के दरवाजे पर खड़ा था , समाचार अब भी चल रहे थे । असमंजस में पड़ा हुआ था कि अंदर जाए या नहीं । उसके दिल और दिमाग में जंग चल रही थी । कुछ मन में ठान उसने कदम वापस लौटा लिए ।
✍️ सीमा वर्मा
बुद्धि विहार
मुरादाबाद
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