बुधवार, 1 जुलाई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा---- काश


      ''अबे ! चल आगे बढ़------न जाने  कहाँ से चले आते हैं साले ।सुबह-सुबह, काम भी तो नहीं करने देते।''सेठ जी ने भिखारी को फटकारते हुए कहा।
       भिखारी जो निरन्तर दस मिनट से खड़ा अपनी भूख मिटाने के लिए पांच रुपये का सवाल कर रहा था, फटकारने पर आँखों में आँसू भरे अगले द्वार की ओर बढ़ गया।
       सेठ जी अपने दैनिक कार्य में व्यस्त हो गये ।एक घण्टे बाद फर्म के जनरल मैनेजर ने आकर बताया सर आज तो भाग्य धोखा दे गया। टेंडर हमारे हाथ से निकल गया।हमारा टेंडर पांच रुपये के अंतर से पिट गया । सेठ को जैसे झटका सा लगा ।पांच रुपये के लिए उस भिखारी का गिड़गिड़ाना उसके मानस पटल पर अंकित हो गया।काश---------?


✍️ अशोक विश्नोई
 मुरादाबाद
 मोबाइल--9411809222

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें